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शिक्षक (Teacher)

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अँधेरी रात में रौशनी फैलाते है  दिया बनकर स्वयं जल जाते है  खून पसीना एक कर हमे सब समझाते है  इसीलिए तो ये बड़े आदर से शिक्षक का दर्जा पाते है  शैतानियां सहन कर जाते है  गलतियां करो तो डांट कर क्षमा भी कर देते है  मार्गदर्शन भी हमारा यही तो करते है  इसीलिए तो ये बड़े चाव से शिक्षक कहलाना फरमाते है  शिक्षा की शुरुवात तो घर से ही हो जाती है  प्रत्येक मनुष्य की माँ ही पहली शिक्षक बन जाती है  पापा की डांट में प्रेम और मम्मा का आँचल पाठशाला बन जाता है  इसीलिए तो एक शिक्षक होना गर्व की बात कहलाता है  गुरु का आशीर्वाद बड़े ही सौभाग्य की बात है  ये तो अपने अपने नसीब का स्वाद है  गुरु वो जो नफरत छुड़वाकर प्यार की शिक्षा दे जाए इसीलिए तो शिक्षक उम्मीदों के द्वार खोल जाए  ना जाने आज कल के लोगों को हुआ क्या है  शिक्षक बनने का ध्येय लगाओ तो ताने मारते है  बुधु लोग इतना भी न समझ पाए  शिक्षक का प्रभाव ही था जिस कारण वो इस मुकाम पर पहुँच पाए  शिक्षक का कोई चेहरा नहीं होता, ना होता है कोई नाम  अपने कर्मों के बल पर देते है दूसरों के सपनों को अंजाम 

Happy Rakshabandhan!!

क्या दिन था वो जब धरती पर उतरी एक नन्ही सी परी थी तो छोटी सी, थोड़ा सा सेहम भी जाती पर किसी से ना डरी शैतानियां थी कूट कूट कर भरी  बेहेन के रूप में घर में जन्मी थी एक परी !! चलते फिरते जादू कर जाती   खामोश दुनिया को हंसना खेलना सिखाती   हर बार नयी नौटंकी का खज़ाना भर आती   इसीलिए तो बेहेन घर की लक्ष्मी कहलाती !! छोटी छोटी बात पर नाराज़ हो जाती थोड़ा सा भाव खाती पर मान ही जाती   गुस्से में लाल टमाटर तो ख़ुशी में पुष्प के पंखुड़ियों सी खिल जाती   इसीलिए तो बहनें शहज़ादी भी कहलाती !! गुस्सा करे तो पापा सी होजाती   रूठ जाये तो किसी कोने में बैठ शांत हो जाती   प्रेम करे तो माँ की ममता याद आती   इसीलिए तो बहनें परियों सी कहलाती !! उम्र में छोटी पर बातें बड़ी बड़ी   कुछ क्षण दूर होजाये तो याद आये हर घडी   जब कुछ ठीक न हो तो बड़े प्यार से सहलाती   इसीलिए तो बहनें प्यारी सी राजकुमारी भी कहलाती !! बेहेन कोई पराया धन नहीं जो आज है और कल नहीं   खोटी तो सोच उन मनुष्यों की है जो सोचते है यही   क्यों की अगर ऐसा होता तो बहनों के साथ रिश्ता कभी ना ह

ये उन दिनों की बात है

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ये उन दिनों की बात है...  जब   हम   छोटे   बच्चे   थे   और   छोटी   सी   लंगोट   पहनते   थे दुनिया   को   हथेली   में   लिए   चार   पैरों   पर   चलते   थे   और   तीन   पाइयों   की   साइकिल   चलाते   थे दस   माह   का   अंतर   था   ज़िन्दगी   हुई   रंगीन  कहने - सुनने   को   तो   बहुत   था   परन्तु   चुप्पी   थी   शालीन   क्या   कहें   ये   उन   दिनों   की   बात   है  ...   ये   उन   दिनों   की   बात   है  ... जब   हम   तनिक   से   बड़े   हुए   और   हमारी   लंगोट   बनी   पाठशाला   की   चड्डी   शाळा   चले   साथ   हाथो   में   लेकर   हाथ   एक - दूजे   का   सहारा   बने   और   खायी   गलतियों   पर   डांट नादानियों  की   अन्बन   ने   तोडा   कुछ   पल   का   साथ   उन   पलों   ने   सिखाया   मात - पिता   के   अलावा   दोस्तों   का   भी   होना   चाहिए   सर   पर   हाथ   वह   छोटे   से   आँगन   की   मस्तियाँ   गली   में   खेलते   खेलते   मार   लगना   या   कांच   का   फूट   जाना   कुछ   मिनटों   में   नौ   दो   ग्यारह   हो   जाना   छोटी   छोटी   खुशियों   में